पाप से बचने का उपाय

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

पाप से बचने का उपाय

पाप से बचने के लिए, मरण को रखो याद।

दुरात्मा महात्मा बना, छोड़ सभी उत्पात।।

महानुभावों! एक दुरात्मा था। प्रतिदिन मुनि के पास जाता और पूछता - हे मुनिवर! मेरा दुष्टता का स्वभाव कैसे छूटेगा? मुझे कोई उपाय बताओ। वे उसे हर बार टाल देते थे। एक दिन जब वह बहुत आग्रह करने लगा तो मुनि ने उसकी हस्तरेखा देखी और विश्वास दिलाया कि अब तुम्हारा दुष्टता का स्वभाव छूटने का समय आ गया है क्योंकि अब तुम्हारी आयु केवल एक महीना ही शेष रह गई है। 

यह सुन कर दुरात्मा चिंता में डूब गया। अगले एक महीने तक उसे कोई दुष्ट कार्य करने का ध्यान भी नहीं आया। बस! हर समय दुःख, भय, दुष्कर्मों के पश्चाताप में और भजन-पूजा में ही लगा रहा। भविष्य में होने वाली दुर्गति की चिन्ता ही उसके मस्तिष्क में छाई रही।

जब एक महीने में एक दिन शेष रह गया तब मुनि ने उसे बुलाया और पूछा - कहो! इस एक महीने में कितनी बार दुष्ट काम किए या उनको करने का भाव मन में आया? कितने पाप किए? 

उत्तर मिला - मुनिराज! एक बार भी नहीं। चित्त पर तो हर समय मृत्यु का भय ही छाया रहा। पाप करने की इच्छा ही मन में नहीं हुई।

यह सुनकर मुनि हँस पड़े - देखा! पाप से बचने का एक ही उपाय है कि हर समय मृत्यु को याद रखो और ऐसा काम करने की सोचो जिससे भविष्य उज्ज्वल बने। अभी तुम्हारे द्वारा जीवन में बहुत से अच्छे कार्य करने बाकी हैं। वह दुरात्मा मृत्यु के टल जाने का अभयव्रत पाकर प्रसन्न हो गया और मृत्यु का स्मरण हर पल प्रगाढ़ रखकर दुरात्मा से महात्मा बन गया।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

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