उत्तम मार्दव : मान कषाय को विगलित करने का पर्व
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
उत्तम मार्दव : मान कषाय को विगलित करने का पर्व
प्रायः देखा जाता है कि हमारे मान कषाय को दो कारणों से पोषण मिलता है। एक तो रूप का घमंड और दूसरा रुपए का। अरे! जिस रूप को देख कर तुम इतना इतरा रहे हो वह तो हर पल क्षीण होता जा रहा है। कुछ समय बाद तो तुम स्वयं ही अपना चेहरा नहीं पहचान पाओगे।
रुपया तो आज तक किसी का न हुआ है और न होगा। चंचल लक्ष्मी का क्या भरोसा? कब उठ कर कहाँ चली जाए? आज तुम्हारे पास है तो उसका उपभोग कर लो या दान कर दो वरना इसका नाश तो होना निश्चित ही है।
मान हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। यह अपने साथ और भी कई शत्रुओं को लाता है। लालच, स्वार्थ, असत्य इसके पीछे पीछे चले आते हैं।
एक बार जब पति पत्नी खाना खाने मेज़ पर बैठे तो पत्नी ने कहा कि सुनो जी! मैंने आज रसगुल्ले बनाए हैं। हम दोनों खाना खाने के बाद खाएंगे, खा कर बताना कैसे बने हैं।
वाह! आज तो मज़े ही आ गए। दिखाओ तो ज़रा।
पति ने देखा - देखने में तो बहुत अच्छे लग रहे हैं। गिन कर देखा तो 13 थे। पत्नी ने भी देखा और बोली कि देखो जी! मैं सुबह से इन्हें बनाने में लगी हुई हूँ। 7 रसगुल्ले मैं खाऊँगी और 6 रसगुल्ले आप के।
वाह जी! कमा कर मैं लाऊँ, सारा दिन मैं थकूँ और अच्छी तरह खाऊँ भी न!
बस! हो गई तू तू मैं मैं शुरू।
बोलते ही गए।
चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
थक भी गए और कोई समाधान भी नहीं निकला।
तब पति ने कहा कि चलो! ऐसा करते हैं कि दोनों मौन व्रत धारण करते हैं। जो पहले बोलेगा वह 6 रसगुल्ले खाएगा और दूसरा जीत जाएगा और 7 रसगुल्ले खाएगा।
ठीक है। हो गया मौन व्रत शुरू। चुपचाप खाना खा लिया। शाम हो गई, कोई नहीं बोला। बोले तो-6 मिलेंगे, खाने कितने-7
रात हो गई। बिना बोले ही सो गए, न बोले और न ही रसगुल्ले खाए।
सुबह हो गई। न बोले।
क्यों? बोले तो-6 मिलेंगे, खाने कितने-7
किसी ने घंटी बजाई। दरवाजा खोले कौन? दरवाजा खोले तो बोले और बोले तो-6 मिलेंगे, खाने कितने-7
सांस रोक कर लेट गए, जैसे घर में कोई हो ही नहीं। पर लोगों ने सोचा कि ये उठ क्यों नहीं रहे? कोई अनहोनी तो नहीं हो गई?
लगे दरवाजा तोड़ने। अन्दर जाकर देखा तो दोनों बिस्तर पर लेटे हुए थे, सांस रुकी हुई थी। हिलाया डुलाया पर न कोई बोल रहा था, न शरीर में कोई हरकत थी।
लो भई, हो गया इनका तो राम नाम सत्य।
कफन काठी का इंतजाम किया, अर्थी सजाई और उन्हें ले चले श्मशान की ओर। दोनों की आँखें खुली हुई थीं। वे एक दूसरे को देख रहे थे पर बोले नहीं। क्यों? बोले तो-6 मिलेंगे, खाने कितने-7
चिता पर लिटा दिया गया। आग लगाने लगे तो पति ने सोचा कि यह तो मुझे भी मरवाएगी और खुद भी मरेगी। वह उठ बैठा और बोलने लगा कि अच्छा! तू 7 खा लेना और मैं 6 खा लूंगा। संयोग से वहां 13 आदमी मौजूद थे।
यह क्या? लगता है कि अकाल मौत मरने के कारण ये दोनों भूत-चुडैल बन गए हैं और हमें ही खाने की बात कर रहे हैं। भागो.............................।
तो यह थी मान की पराकाष्ठा जिसने उन दोनों को मौत के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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