शुभ कर्म और अशुभ कर्म

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

शुभ कर्म और अशुभ कर्म

एक किसान अपने खेत में जैसे बीज बोता है, उसे वैसी ही फसल काटने के लिए मिलती है। उसने गेहूँ के बीज डाले हैं तो गेहूँ की फसल काट लेगा और धान बोया है तो उसे चावल मिल जाएंगे। एक पुरानी कहावत है कि बोए पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से होय। बबूल का पेड़ लगाते हैं और आम की इच्छा करते हैं। यह तो सम्भव नहीं है।

हमने इस जन्म में या पूर्व जन्म में जो शुभ या अशुभ कर्म किए हैं, उनका फल अब हमारे सामने आ रहा है। पहले तो अवधि ज्ञानी मुनि महाराज होते थे जो अपने अवधि ज्ञान से बता देते थे कि यह सुख या दुःख तुम्हारे द्वारा किए गए किस कर्म के फल के रूप में तुम्हारे सामने आ रहा है। 

अब ये सब बातें हमें शास्त्रों के आधार पर मालूम होती हैं कि किस शुभ कर्म का फल सुख के रूप में मिलता है जिसे साता कर्म का उदय कहते हैं और किस अशुभ कर्म का फल दुःख के रूप में मिलता है जिसे असाता कर्म का उदय कहते हैं।

क्या हम असाता कर्म के उदय को साता कर्म में बदल सकते हैं?

हाँ, क्यों नहीं?

कैसे?

मान लो हमारे पाप-कर्म अति तीव्र गति से उदय में आ रहे हैं तो उनकी गति को कम करने के लिए हमें पुण्य की गति को बढ़ाना पड़ेगा। 

यदि हम एक तेज़ रफ्तार से चलती हुई गाड़ी को ओवरटेक करना चाहते हैं तो हमें अपनी गाड़ी की स्पीड तो बढ़ानी ही पड़ेगी। आपने 24 घंटे में से 2 घंटे तो धर्म ध्यान कर लिया और 22 घंटे पाप कार्यों में लगा दिए तो क्या असाता कर्म साता में बदल जाएंगे?

पलड़ा तो फिर भी अशुभ कर्मों का ही भारी रहेगा। फिर आप कहेंगे कि महाराज, धर्म करने पर भी दुःख दूर नहीं हो रहे।

जैसे चावल डिब्बे में रखे-रखे भात नहीं बनता। उसे भात में बदलने के लिए निमित्तों का संयोग चाहिए। पानी, अग्नि, घी, मसाले आदि के संयोग से ही तो वह भात के रूप में परिवर्तित होगा। इसे ही काल लब्धि कहते हैं। वैसे ही शुभ कर्मों को पुरुषार्थ का संयोग मिलेगा तो वह अशुभ कर्मों की गति को मंद करेगा और दुःख भी सुख में बदल जाएंगे।

मैनासुन्दरी ने दुःख में भी पुरुषार्थ करना नहीं छोड़ा। कोढ़ी पति के साथ विवाह होने पर भी धर्म के बल पर उसका कोढ़ दूर करके उसे कामदेव के समान सुंदर बना दिया। मानतुंग आचार्य ने कारागार में भी भगवान आदिनाथ की स्तुति की। उसी का फल था कि उनके सभी ताले टूट गये और वे बंधन से आज़ाद हो गए। 

जो दुःख में भी भगवान का चिंतन करता है और लगातार करता है उसके दुःख भी सुख में बदल जाते हैं।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

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