दो बातें जो सदा याद रखें
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
दो बातें जो सदा याद रखें
वे दो बातें कौन सी हैं जो तुम्हें सदा याद रखनी चाहिएं। वे हैं - मौत और अपने जीवन का लक्ष्य।
हमारे जीवन का लक्ष्य यह नहीं है कि जन्म लिया, कमाया-खाया, धन का उपभोग किया और यमराज का बुलावा आया तो उठ कर चल दिए।
संत विरंजन सागर केवल जीने की कला ही नहीं सिखाते बल्कि मरने की तरकीब भी बताते हैं। सल्लेखना समाधि पूर्वक मरना ही वास्तविक रूप से जीवन को सफल बनाता है।
संत तभी तो संत बन पाते हैं क्योंकि वे एक क्षण के लिए भी मृत्यु का विस्मरण नहीं करते। उन्हें मालूम है कि धन-वैभव तो संसार में ही मिला था और यहीं छोड़ कर जाना है।
तो साथ क्या जाएगा? बस! उसी के चिंतन में, धर्म ध्यान में ही लीन रहते हैं और अपने जीवन को अर्थ प्रदान करते हैं।
अरे! जन्म का समय तो शायद फिर भी मालूम हो जाए पर क्या मरण का समय निश्चित है?
यमराज तो किसी भी समय तुम्हारे दरवाज़े पर दस्तक दे सकता है।
यह तो निश्चित है न! कि जिसने जन्म लिया है उसका मरण तो अवश्य होगा।
एक सेठ ने यमराज से दोस्ती कर ली कि तुम आने से पहले मुझे सूचित कर देना और निश्चिन्त हो कर भोगोपभोग में लग गया। एक दिन अचानक यमराज उसके द्वार पर पहुँच गया कि चलो!
अरे! तुम कैसे दोस्त हो? तुम तो कहते थे कि मैं आने से कुछ समय पहले तुम्हें बता दूंगा पर न तुमने पत्र लिखा, न ई-मेल भेजी। ऐसे कैसे लेने आ गए?
वाह सेठजी! भेजे तो थे संदेश। एक नहीं चार बार संदेशा भेजा।
भई, कमाल करते हो! कब दिया संदेशा?
देखो! पहली बार तो जब तुम्हारे बालों में सफेदी आने लगी, तब मैंने तुम्हें सावधान किया कि उम्र ढलने लगी है।
फिर तुम्हें कानों से सुनना कम हो गया तब सचेत किया कि अब तो धर्म की बातें सुनो। व्यर्थ की बातों पर ध्यान न दो।
दांत गिरने लगे तब तीसरा पत्र भेजा कि सात्विक भोजन प्रारम्भ कर दो। आँखों से दिखना कम हो गया तब समझाया कि आँख मूंद कर भगवान के ध्यान में लग जाओ।
पर लगता है कि जीवन भर तुमने किसी संत का समागम ही नहीं किया जो तुम्हें ये संकेत समझा सकें।
हे चैतन्य आत्माओं! अभी भी समय है। समय बीतने से पहले समय (आत्मा) की पहचान करना सीख जाओ और समयसार को जान लो। इसी में सबका कल्याण है।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
Namstu gurudev ji
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