ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 5
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 5
एक स्थान पर बैठे-बैठे ही यंत्र का केवल एक बटन दबा कर करोड़ों मासूमों का नरसंहार कर डालने की क्षमता का विकास ऐसे ही शिक्षित लोगों ने किया है। जो शिक्षित तो थे पर दीक्षित नहीं थे, आज वही लोग इन साधनों का अविष्कार करके पछता रहे हैं कि न जाने कौन इनका दुरुपयोग कर बैठेगा और मानव जाति को विनाश के गहरे गर्त में धकेल देगा।
परमात्म तत्व में दृढ़ विश्वास और साकार सद्गुरु के प्रति अटूट भक्ति जीवन में सुख, शांति और दिव्यता का प्रकाश भर देती है। शांति पाने के लिए जितनी सहज निर्मल बुद्धि आवश्यक है, उतनी अन्य किसी विशेष योग्यता या बाह्य आडम्बर की आवश्यकता नहीं है।
इस दुनिया में दो प्रकार के लोग मनुष्य के रूप में ईश्वर की उपासना नहीं करते। एक तो वे मनुष्य जिन्हें धर्म का कोई ज्ञान ही नहीं है। ऐसे लोग आहार, निद्रा, भय, मैथुन के अलावा अपना कोई और कर्त्तव्य ही नहीं समझते और न ही उन्हें समझने की जिज्ञासा है। दूसरे वे जो परमहंस हैं। वे मानव जाति की सारी दुर्बलताओं से ऊपर उठ चुके हैं। अपनी मानवीय प्रकृति की सीमा से परे चले गए हैं। उनके लिए सारी प्रकृति आत्म-स्वरूप हो गई है। वे देह में रहते हुए भी देहातीत, गुणों में वर्तते हुए भी गुणातीत भूमिका में विचरण करते हैं। ऐसे परमहंस ही ईश्वर को उसके वास्तविक स्वरूप में भज सकते हैं।
तात्पर्य यह है कि अत्यन्त मूढ़, अज्ञानी भी ईश्वर की उपासना नहीं कर सकते और परमज्ञानी भी। सामान्य मनुष्य तो अज्ञानवश उपासना नहीं करते और जीवनमुक्त ज्ञानी अपने आप में ही परमात्मा का अनुभव करने के कारण उपासना नहीं करता। इन दो चरम विरोधाभासी अवस्थाओं के बीच रहने वाला कोई व्यक्ति आकर यह कहे कि मैं भगवान को मनुष्य रूप में, गुरु के रूप में भजने को तैयार नहीं हूँ तो उस पर रहम करना। वह तो दया का पात्र है। वह थोथी बकवास करने वाला है। उसका धर्म अविकसित और खोखला है।
”जब आँख कमज़ोर हो जाए तो दिमाग से देखो और जब कान कच्चे हो जाएं तो दिल की आवाज़ सुनो।“
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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