ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 4

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 4

ईश्वर के स्वरूप के बारे में चाहे कोई कितनी ही लंबी-चौड़ी बातें करे, अपनी कल्पना और भावना को कितना ही विस्तृत करे, वह अपनी कल्पना और भावना से आगे नहीं जा सकता। चाहे कोई ईश्वर व संसार पर कितना ही लंबा चौड़ा विद्वत्तापूर्ण वक्तव्य दे डाले, बहुत बड़ा युक्तिवादी बन कर ईश्वरावतार का खंडन करे, उपासना की अर्थहीनता को सिद्ध करे; किन्तु यह सब केवल शब्दों का ढेर, बुद्धि की कसरत मात्र रह जाएगा।

किसी को अवतार और उसकी उपासना के विरूद्ध अपनी डुगडुगी बजाते हुए देखो तो उसके पास जाकर खोजना कि परमात्मा के विषय में उसकी क्या धारणा है?

निराकार, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान आदि शब्दों के लक्ष्यहीन शब्दों के सिवाय उसे न तो कोई ज्ञान है और न ही अनुभूति। वास्तव में वह कुछ नहीं समझता। उन बड़े-बड़े शब्दों के विषय में उसकी अपनी मानुषी प्रकृति प्रभावित हुई हो, ऐसा कोई अनुभव उसके पास नहीं है। इस तथ्य में तो उसमें और एक राह चलते अनपढ़ गंवार में कोई भेद नहीं है। यदि कोई भेद है भी तो केवल इतना ही कि वह गंवार कम से कम शांत तो रह सकता है, संसार की शांति को भंग तो नहीं करता।  

एक शिक्षित व्यक्ति समाज में, राष्ट्र में, विश्व में नए-नए अविष्कार कर सकता है, सुख-सुविधा, भोग-विलास की सामग्री इकट्ठी कर सकता है। लेकिन यदि वह दीक्षित नहीं है और सद्गुरु की करुणापूरित दृष्टि से पूरित नहीं है। ईश्वर को, निराकार ब्रह्म को सद्गुरु में साकार रूप में प्रतिष्ठित नहीं देख सकता तो वह तथाकथित शिक्षित व्यक्ति विश्व में सबसे ज़्यादा ख़तरा पैदा कर सकता है।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

Comments

Popular posts from this blog

निष्काम कर्म

सामायिक

नम्रता से प्रभुता