ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 3
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 3
करुणा ही उनकी जीविका है, प्रेम ही उनका श्वास है। मानव देह में विराजित परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति के माध्यम के बिना कोई भी व्यक्ति परमात्मा के दर्शन नहीं कर सकता। यदि हम अपना मन बना भी लें कि हम किसी अन्य तपस्या की सहायता से परमात्मा के दर्शन करने का प्रयत्न कर लें तो हम अपने मन में परमात्मा की एक काल्पनिक छवि घड़ लेते हैं और उसे ईश्वर के समकक्ष बैठा कर अपने मन में परमात्मा के दर्शन करने का प्रयास करते हैं।
उस काल्पनिक रूप की पूजा, उपासना और उसके साथ तादात्म्य करने में लग जाते हैं। इस भयानक ख़तरे से बचने के लिए ईश्वर की उपासना मनुष्य के रूप में की जा सकती है और मानवता में व्यक्त की जा सकती है। मानवता में व्यक्त ईश्वरत्व को सद्गुरु के रूप में माना जा सकता है।
यह त्रिकालिक व हितकारी सत्य है। यह कुदरत का कानून है कि यदि आज हम उसे ईश्वर के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे तो कल छूरे की नोक पर हमें उसको ईश्वर के रूप में स्वीकार करना पड़ेगा। हम मनुष्य हैं इसलिए मनुष्यत्व की मान्यताओं में अपने आपको जकड़े हुए हैं। हम मनुष्यत्व के उच्चतर स्वरूप में परमात्मा को समझने में, उसका तात्विक ज्ञान पाने में समर्थ नहीं हैं।
जब हम अपनी मानवीय प्रकृति से ऊपर उठ कर गुणातीत अवस्था में पहुँचेंगे, तब हम उसे मनुष्य के रूप में ही पहचान सकेंगे और हमें मनुष्य के रूप में ही ईश्वर की उपासना करनी पड़ेगी।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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