ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 2
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 2
सद्गुरु केवल स्पर्श से, प्रसाद के आदान प्रदान से, कथन से, दृष्टिपात से, यहाँ तक कि संकल्प मात्र से ही घोर नास्तिक को भी आध्यात्मिकता प्रदान कर सकते हैं। उनकी इच्छा मात्र से पतित से पतित व्यक्ति भी तुरंत साधु स्वभाव का हो जाता है।
ऐसे हैं वे गुरुओं के भी गुरु।
वे मानव देह में विराजित, मनुष्य के रूप में ईश्वर की सर्वोच्च अभिव्यक्ति हैं। उनके माध्यम के बिना, उनकी करुणा, कृपा, कटाक्ष के बिना, हर कदम पर मिलने वाली सहायता के बिना, हम अन्य किसी भी कठोर प्रयत्न व उपाय का आश्रय ले कर परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते।
वास्तव में वे ही हमारे लिए परमात्मा के समान हैं। इस संसार सागर में वे कमंडल भर एकमात्र भगवद् स्वरूप हैं जिनकी कल्याणकारी, मोक्षप्रद उपासना हमारे लिए प्राणवायु के समान है जिसके बिना हम जीवित रह ही नहीं सकते।
हम उनसे प्रेम करने के लिए विवश हो जाते हैं क्योंकि वे अनंत प्रेम के भंडार हैं, सुख के दरिया हैं, आनंद के सागर हैं।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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