ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 1

मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज

ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु : ईश्वर का साकार स्वरूप - 1

महानुभावों! जिस स्थान पर परमात्मा के गुणों का श्रवण होता है, कीर्तन और गुणानुवाद होता है, वह स्थान पवित्र हो जाता है।

उस स्थान को तीर्थ की संज्ञा दी जाती है। वहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का मन पावन और पवित्र हो जाता है। जब भगवद् गुणानुवाद से वह स्थान तीर्थत्व को प्राप्त हो जाता है तो शुद्ध मन से भगवान के गुणों का गान करने वाला कितना पवित्र होगा और जिसकी आत्मा में भगवत् तत्व प्रगट हो गया हो, उस की पवित्रता कितनी उच्च कोटि की होगी, इसका हम अनुमान भी नहीं लगा सकते।

ऐसे महान गुरु सब के लिए मंगलकारी होते हैं। जिनसे हमें आध्यात्मिक शिक्षा मिलती है, हमारी आत्मा की उन्नति होती है, असीम आत्म-शांति मिलती है, उनके समीप जाते हुए हमारे भीतर स्वयं ही अति विनम्रता और भक्ति के भाव जागृत होने लगते हैं।

संसार में ऐसे वंदनीय उत्कृष्ट गुरुओं की संख्या अति अल्प है। उनका सामीप्य केवल पवित्र स्थानों पर ही उपलब्ध हो सकता है, सर्वत्र नहीं। तथापि यह धरा ऐसे महापुरुषों से सर्वथा शून्य नहीं है। वे मानव जीवन के सुंदरतम सुरभि-युक्त पुष्प हैं और अहैतुक असीम दया के सागर हैं। 

भगवान श्री कृष्ण भागवत में कहते हैं - मुझे ही आचार्य जानो। ऐसे सत्तत्व का बोध कराने वाले, अहैतुकी कृपा बरसाने वाले, आचार्यों के रूप में, गुरुओं के रूप में भगवान स्वयं ही अवनि पर अवतरित होते हैं। यदि यह संसार ऐसे करुणासिन्धु सद्गुरुओं से रहित हो जाए तो उसी क्षण यह एक भयानक नरक-कुंड में परिवर्तित हो जाएगा और विनाश की ओर द्रुतगति से अग्रसर होने लगेगा। 

सामान्य गुरुओं से भी श्रेष्ठ एक उच्च श्रेणी के गुरु होते हैं और वे हैं इस पृथ्वी पर ईश्वर का, ब्रह्म का साकार अवतार।


ओऽम् शांति सर्व शांति!!

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