भावेन बन्धो, भावेन मोक्षो
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
भावेन बन्धो, भावेन मोक्षो
भावों से ही कर्मबंध होता है। शुभ भावों से शुभ कर्मों का बंध होता है और अशुभ भावों से अशुभ कर्मों का बंध होता है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह ध्यान में रखनी चाहिए कि कहीं ऐसा न हो जाए कि शुभ करते-करते अशुभ कर्मों का बंध हो जाए।
वह कैसे, महाराज?
जब हम पूजा-पाठ करते हैं, जाप-ध्यान करते हैं तो शुभ कर्मों का बंध ही तो होगा।
हाँ, हाँ अवश्य होगा लेकिन तब होगा जब हम मन, वचन और काया का त्रियोग सम्भाल कर पूजा-पाठ और जाप-ध्यान कर रहे हों। तुम्हारी वास्तविकता तो यह है कि (मन, वचन, काया) होता कहीं ओर है और रहता कहीं ओर है।
जैसे तुमने पक्षी को आकाश में उड़ते हुए देखा होगा। उड़ रहा है आकाश में और नज़र गड़ाए हुए है ज़मीन पर पड़ी हुई गंदगी और कीट-पतंगों पर।
एक बार राम और लक्ष्मण तालाब के समीप चले जा रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि एक सफेद रंग का बगुला तालाब के किनारे आँख बंद किए ध्यान में मग्न खड़ा था।
‘वाह! देखो, देखो भैया! इसे देख कर तो लग रहा है कि कितनी लग्न से भगवान की भक्ति कर रहा हो। सच्चा भक्त तो यही है।’
जैसे ही राम ने उसकी ओर देखा तो झट से पहचान गए और लक्ष्मण से बोले कि ‘यह सच्चा भक्त नहीं, बगुला भक्त है।’
‘ऐसा क्यों, भैया?’
‘ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी काया तो ध्यान की मुद्रा में खड़ी है, मुख से इसके लार बह रही है और मन मछली में अटका हुआ है कि कब मछली मेरे समीप आए और मैं उसे अपने मुख का ग्रास बनाऊँ। ऐसे भक्तों को सच्चा भक्त नहीं बगुला भक्त कहते हैं।’
हमारे जैसे भाव होते हैं हमें वैसे ही कर्मों का बंध होता है। केवल मंदिर जाने से पुण्य बंध नहीं होता बल्कि वहाँ जाकर हम ‘त्रियोग सम्हारि के’ पूजा पाठ कर रहे हैं तभी हम शुभ कर्मों का बंध कर सकेंगे। ‘त्रियोग सम्हारि के’ का अर्थ है - मन, वचन और काया; तीनों का योग एक स्थान पर केन्द्रित करना।
देव, शास्त्र, गुरु की पूजा करते समय क्रियाओं की गहराई में मत जाओ कि तीन चावल चढ़ाने को कहा है या पाँच बादाम चढ़ाने हैं बल्कि भाव की गहराई में जाओ कि अक्षत अर्पित करने से मैं अक्षय पद प्राप्त करने की कामना करता हूँ और बादाम चढ़ा कर मैं मोक्ष फल को प्राप्त करने की कामना से यह पूजा सम्पन्न कर रहा हूँ क्योंकि ‘भावेन बन्धो, भावेन मोक्षो’।
भाव से ही बन्ध है और भाव से ही मोक्ष है।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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