अपनी अमानत से प्रेम करो, वरना जमानत भी नहीं मिलेगी
मुनि श्री विरंजन सागर जी महाराज
अपनी अमानत से प्रेम करो, वरना जमानत भी नहीं मिलेगी
संसार में आदमी गैरों की अमानत याद रखने के चक्कर में अपनी अमानत अर्थात् अपनी आत्मा को भूल गया है। पर-पदार्थ को कितना संभाल कर रखते हैं, उसी में सुख का वेदन करते हैं। जैसे एक कुत्ते को कहीं से हड्डी मिली। उसे वह अपने मुंह में रखकर चबाने लगा। हड्डी सूखी हुई थी इसलिए उसमें कोई रस नहीं था। लेकिन सख्त हड्डी चबाने के कारण उसका मुंह छिल गया और उसमें से खून आने लगा। कुत्ता अपने ही खून को हड्डी का स्वाद मान कर पीता रहा और आनन्द लेता रहा। इसी प्रकार हम भी पर-वस्तु में सुख मान कर आनन्द मना रहे हैं, जबकि वास्तव में वह दुःख का कारण है, सुख का नहीं।
हम अपने आत्म-तत्व के सुख की अमानत का ध्यान नहीं कर रहे, जिसे समय हमसे धीरे-धीरे छीनता जा रहा है। यदि हमने अपनी अमानत से प्रेम नहीं किया और इसका ध्यान करना भूल गए, तो इस भूल की जमानत भी नहीं मिलेगी।
एक संत भी किसी भव्यात्मा की ही जमानत देता है। जब तक हमें अपनी अमानत का साक्षात्कार नहीं होगा, तब तक न तो कोई संत हमारी जमानत देगा और न ही हम पर प्रभु की या संतों की इनायत हो सकेगी तथा न ही हमारी तहे-दिल से प्रभु की इबादत हो पाएगी। अपनी अमानत को दुनिया की चंद चीज़ों के बदले बेच कर बरबाद न कीजिए। हमारी अमानत बेशकीमती है। इसे इन्द्रियों के भोगों में यूँ बरबाद न करो। यदि इस अमानत को बचाने के लिए दुनिया की सारी दौलत भी छोड़नी पड़े तो समझो कि हमने सस्ते में ही इसे पा लिया।
हमारी सारी त्याग, तपस्या, व्रत, उपवास, आराधना और साधना इसी अमानत की सुरक्षा के लिए है। यह अमानत हमें विरासत में मिली है, जिस पर हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है। जो आदमी अपनी अमानत से प्रेम नहीं कर सकता, वह लाख इबादत करे तो भी उसे परमात्मा से मिली विरासत उपलब्ध नहीं हो सकती। हमारी विरासत शाश्वत है, जिसकी उपलब्धि के बिना इंसान को राहत नहीं मिल सकती। वह हर कदम पर आहत ही होता रहेगा।
दुनिया में हमारे अपने सिवा कोई दूसरा हमारी विरासत को हमें दिलवाने में सक्षम नहीं है। हम स्वयं ही हैं जो यदि चेत जाएं तो परमात्मा को पा सकते है और यदि अचेत हो जाएं तो बार-बार जन्म-मरण करते रहेंगे और अपना संसार बढ़ाते रहेंगे। हमारी शाही सोच ही हमें अमानत को बचाने में सहायता करेगी।
सोच अपनी-अपनी, सफ़र अपना-अपना।
कदम अपना-अपना, शहर अपना-अपना।।
हम अपने लक्ष्य पर नज़र रखें, अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं, जिससे शीघ्र ही अपनी अमानत से प्राप्त आनन्द से अभिभूत होकर अपने जीवन को सफल बनाएं।
ओऽम् शांति सर्व शांति!!
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