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Showing posts from March, 2024

अनमोल वचन - पुण्य-पाप, सुख-दुःख

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अनमोल वचन - पुण्य-पाप, सुख-दुःख (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) धरती के पास सब कुछ है, लेकिन एक चीज नहीं है - घमंड । पानी के पास सब कुछ है, लेकिन एक चीज नहीं है - छुआछूत की बीमारी । शास्त्रों में सब कुछ है, पर एक चीज नहीं है - झूठ । आदमी में सब कुछ है, पर एक चीज नहीं है - जीवन में सब्र नहीं है । सत्य कड़वा लगता है पर वह होता बहुत मीठा है। महावीर भगवान कहते हैं - सुख में और दुःख में सब्र रखना चाहिए। थोड़ा-सा दुःख आया नहीं कि भगवान.... भगवान.... चिल्लाने लगे। भगवान तो न लेता है और न देता है। वह तो तराजू के समान है, जो सुख व दुःख दोनों पलड़ों को समान रखता है। व्यक्ति सुख में परमात्मा को याद नहीं करता। उपसर्ग और परिशह - जानबूझ कर दुःख लाना परिशह है और अकस्मात् दुःख का आ जाना उपसर्ग है। जिंदगी के बगीचे में सुख व दुःख दोनों होते हैं, जैसे अंगूर के बगीचे में सभी अंगूर मीठे भी नहीं होते और खट्टे भी नहीं होते। ऐसी चार चीजें होती हैं जो पहले सुख देती हैं और बाद में दुःख देती हैं - इन्द्रिय सुख। तलवार में लगा शहद। स्वान का हड्डी को चबाना। खाज खुजाना। ऐसी तीन बातें होती हैं ...

भूल सुधार

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भूल सुधार (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) एक साधक ने अपने दामाद को तीन लाख रुपये व्यापार के लिए दिए। उसका व्यापार चल गया लेकिन उसने वे रुपए अपने ससुर जी को नहीं लौटाए। आखिर दोनों में झगड़ा हो गया और झगड़ा इस सीमा तक बढ़ा कि दोनों का एक दूसरे के साथ बोलना बंद हो गया। उन्होंने एक दूसरे की निंदा करना प्रारंभ कर दिया। जब देखो तब ससुर दामाद की निंदा किया करता था। इस कारण उसकी साधना पर प्रभाव पड़ना प्रारम्भ हो गया। वह हर समय साधना के समय, ध्यान के समय अपने दामाद के प्रति अशुभ चिंतन करने लगा। इस कारण उसके व्यापार आदि पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ? इस समय वह एक संत मुनि के पास गया समाधान के लिए। संत ने कहा - बेटा! चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा। तुम दामाद के पास जाना और कहना कि बेटा! पुरानी बात को भूल जाओ और मुझे क्षमा कर दो। गलती मेरी ही है जो मैं तुमसे पैसे वापिस पाने की उम्मीद लगा कर बैठ गया। साधक ने संत ने कहा कि संत जी! पैसे भी मैंने ही दिए और क्षमा भी मैं ही माँगू, ऐसा कैसे हो सकता है? संत जी ने उत्तर दिया कि परिवार में ऐसा कोई भी स...

नारी के तीन रूप

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नारी के तीन रूप (परम पूज्य उपाध्याय श्री विरंजनसागर महाराज की लेखनी से) नारी के तीन रूप होते हैं। नारी लक्ष्मी भी है, सरस्वती भी है और दुर्गा भी है। जब वह परिवार को संस्कार की दौलत देकर उसे संभालती है, तब वह लक्ष्मी के रूप में अपने दायित्व का निर्वाह करती है। नारी जब संतान को तत्वज्ञान देकर उसे शिक्षित करती है, तब उसका सरस्वती का रूप दिखलाई देता है। नारी सामाजिक बुराइयों और कुरीतियों को ध्वस्त करने के लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य का परिचय देती है, तब वह दुर्गा बन जाती है। तुम ही लक्ष्मी हो, तुम ही दुर्गा हो, तुम ही सरस्वती हो, लेकिन आज की नारियाँ अपने दायित्व को ही नहीं, अपनी शक्ति और अपने स्वाभिमान को भी भूल गई हैं। याद करो अपने स्वाभिमान से लबरेज़ अतीत को, गौरवशाली इतिहास को, जो नारी ने रचा था। जो काम पुरुष नहीं कर पाए, वह नारियों ने कर दिखाया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी नारी ने ऐसा इतिहास रचा, जिसे पढ़कर नारी शक्ति का मस्तक ही गर्व से ऊँचा नहीं हुआ, अपितु पुरुषों के लिए भी अनुकरणीय हो गया। वह दिन याद करो, जब नारी ने रानी लक्ष्मीबाई के रूप में वीरता का प्रदर्शन किया और अंग्रेजी हुक...